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मृग तृष्णा ( कुण्डलिया छंद )

meri kalam, mere jazbaat
meri kalam, mere jazbaat
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तृष्णा मृग की ज्यों उसे, सहरा में भटकाय |

तप्त रेत में भी उसे, जल का बिम्ब दिखाय ||

जल का बिम्ब दिखाय, बुझे पर प्यास न उसकी|

त्यों माया से होय , बुद्धि कुंठित मानव की ||

प्रज्ञा का पट खोल, नाम ले राधे – कृष्णा |


सुमिरन करते साथ, मिटेगी हरेक तृष्णा ||mrigtrishna

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